अध्याय - 6
पोकरण ठिकाणे की प्रशासनिक एवं आर्थिक व्यवस्था
पोकरण, जोधपुर राज्य का एक बड़ा ठिकाणा था। मालानी के 1031 गांवों के पश्चात् पोकरण पट्टे के गांवों की संख्या सर्वाधिक 1002 थी। पोकरण ठिकाणा प्रशासनिक दृष्टि से जोधपुर परगने के अधीन था। इसके अधीन पोकरण के गांवों के अतिरिक्त साकड़ा3, जालोर4, सिवाणा5 और नागोर6 के गांव भी सम्मिलित रहे हैं। इस ठिकणांे के मूल गांवों की संख्या 1728 ई. में ठा. महासिंह के समय मात्र 727 थी, जो क्रमशः बढ़ते रहे। उसे प्रधानगी के दायित्व के निर्वाह हेतु मजल ओर दुनाडा नामक दो बड़े गांव दिए गए8। इस प्रकार कुल 74 गांव महासिंह के पास थे।9 ठा. देवीसिंह के समय यह संख्या बढ़कर 82 गांव हो गई। ठा. देवीसिंह की राजकीय सेवकों द्वारा हत्या करने पर उसके पुत्र सबलसिंह ने विद्रोह किया। सबलसिंह की आकस्मिक मृत्यु के बाद वृद्धि किए गए गांव वापस ले लिए गए। 1767 ई. में ठा. सवाईसिंह के समय (मजल, दुनाडा रहित)10 पट्टे के कुल गांवों की संख्या 72 थी। 1808 ई. में ठा. सवाईसिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र सालम सिंह को 84 गांव (मजल, दुनाडा सहित) का पट्टा हुआ।11 1823 ई. में ठा. सालमसिंह के स्वर्गवास के समय उसके कोई पुत्र नहीं होने के कारण पोकरण का पट्टा जब्त हुआ और पोकरण को प्रबंध के लिए सरदारमल सिंघवी के सुपुर्द किया गया। 1825 ई. को उसके गोद आए पुत्र बभूतसिंह के नाम पोकरण का पट्टा बहाल हुआ जिसमें मजल दुनाडा सहित 94 गांव थे।12 1840 ई. में सिवाणा के गांव करमावास, बीनावास पट्टे में तो नहीं लिखे गए किन्तु उनकी पैदाइश उसे देने के आदेश दिए गए।13 कुछ और भी गांव उसे प्रदान किए गए। ठा. मंगलसिंह के समय कुल 100 गांव थे।14
पोकरण के 100 गांव जो गढ़ जोधपुर के अधीन थे, एक क्षेत्र. विशेष में नहीं होकर बिखरे हुए थे। ठा. चैनसिंह अवध के ताल्लुकदार भी थे।15 इतने बडे़ क्षेत्र में प्रशासनिक सुव्यवस्था के लिए कर्मचारियों की एक फौज नियुक्त थी। पोकरण के ठाकुरों के पास जोधपुर राज्य की प्रधानगी होने के कारण वे ठिकाणा की ओर कम ही ध्यान दे पाते थे।16 उन्हें ठिकाणे में रहने का मौका कम हीं मिल पाता था। पोकरण के ठिकाणेदारों की जोधपुर के महाराजाओं से नाराजगी की अवस्था में ये ठिकाणेदार लंबे समय तक अपने ठिकाणों में रहे। ठा. देवीसिंह महाराजा विजयसिंह से नाराजगी के चलते कुछ वर्ष पोकरण रहा, ठा. सवाईसिंह पहले अपनी बाल्यवस्था के कारण और बाद में महाराजा मानसिंह से उŸाराधिकार के मुद्दे पर मनमुटाव के कारण पोकरण रहा, ठा. सालमसिंह ने एक लंबे समय तक दरबार की गतिविधियों के प्रति उपेक्षा भाव रखा और पोकरण में ही रहा। ठा. बभूतसिंह भी राजदरबार की गुटबाजी के कारण महाराजा तख्तसिंह के शासनकाल में अधिकांशतः अपने ठिकाणें में ही रहा। उसने अपनी प्रशासनिक प्रतिभा का इस्तेमाल अपने ठिकाणे में किया और राजस्व प्राप्तियों को बढाया। उसके प्रशासन की प्रशंसा अंग्रेज पोलिटिकल एजेण्ट कर्नल कीटिंग और स्वयं महाराजा तख्तसिंह ने भी जैसलमेर विवाह हेतु जाते समय पोकरण पड़ाव के समय की।17 किन्तु उसके अधिक समय तक जोधपुर से बाहर रहने के कारण प्रधानपद की शक्ति और अधिकारों का क्षय हो गया। इस पद के कार्य अब किलेदार और दीवान में बंट गए।18 ठा. बभूतसिंह के उŸाराधिकारियों को प्रधानगी का सिरोपाव देने के विवरण हमें नहीं मिलते है। अब इन्हंे किसी कौंसिल का सदस्य या मंत्री बनाया जाने लगा।19 किन्तु दरबार में आसन ग्रहण करने और महाराजा को नजर करने सम्बन्धी प्राथमिकता उन्हें पूर्व के समान मिलती रही।
पोकरण की प्रशासनिक संरचना -
ठिकाणेदार - पोकरण खास और पट्टे के गांवों के प्रशासन में पोकरण में ठिकाणेदारों का सर्वोच्च सोपान था। वे अपने ठिकाणे में एक अर्द्ध-स्वतंत्र शासक की तरह कार्य करते थे। ठिकाणे की प्रशासनिक व्यवस्था वास्तव में राज्य प्रशसन व्यवस्था का ही लघु रूप था।20 उसकी अपने ठिकाणे में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना करने की जिम्मेदारी थी। इस उद्देश्य की प्राप्ति करने के लिए उसे अधीनस्थ कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार था। उसके अधीन पोकरण जमीयत की फौज थी।21 उसे पुलिस और प्रथम दर्जे के न्यायिक अधिकार प्राप्त थे।22 ठिकाणे के आर्थिक प्रशासन भी उसे के जिम्मे था तथा राजदरबार को समय-समय पर रेख-चाकरी, हुकुमनामा एवम् अन्यकरों का भुगतान करने की जिम्मेदारी थी। पोकरण के ठिकाणेदार मारवाड़़ राज्य के प्रधान थे। इस कारण उनके पास राज्य के सभी पदाधिकारियों से सम्बन्धित विवरण रहता था, जैसे कि सरदारों को दिए जाने वाले पट्टे के गावों का विवरण, रेख की मात्रा, कुल प्राप्तियाँ, हुकुमनामा इत्यादि। उसकी अनुशंसा पर महाराज उŸाराधिकार प्राप्त सरदार को हुकुमनामे में रियायत प्रदान करता था। इस सेवा के प्रतिफल में उसे प्रति पट्टेदार प्रतिवर्ष एक रूपया मिलता था।23 अपने ठिकाणे के प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए वह आवश्यकता के अनुसार प्रधान, कामदार, फौजदार, मुसाहिब, वकील, दरोगा, कोठारी, तहसीलदार आदि कर्मचारियों की नियुक्ति करता था।
प्रधान - पोकरण जैसे बड़े ठिकाणे में प्रधान की नियुक्ति की जाती थी। उनके कार्य मुख्यः सामान्य प्रशासन सम्बन्धी थे। बीकानेर री ख्यात में पोकरण के प्रधान भायल जीवराज का विवरण मिलता है जिसने पोकरण जमीयत की सेना और बीकानेर की सेना के संयुक्त अभियान द्वारा 1807 ई. में फलोदी पर बीकानेर का अधिकार करवा दिया।24
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