Friday 6 January 2017

अध्याय - 2 -7

पोकरण को प्राप्त करने के लिए उपर्युक्त युद्ध में महाराजा जसवंत सिंह की राजनीतिक कुशलता भी दृष्टिगोचर होती है। इस अभियान में जसवंतसिंह ने मुगल सम्राट शाहजहां की आज्ञा की अनुपालना भी कर दी और सबलसिंह की सहायता करके फलोदी और पोकरण के परगने जोधपुर राज्य में मिलाकर अपना प्रयोजन भी सिद्ध कर लिया तथा सबलसिंह को जैसलमेर का राज्य भी मिल गया।109
नवंबर 1650 (कार्तिक सुदी 12) को महाराजा ने मुहता नैणसी को सिरोपाव देकर एवं पोकरण का हाकिम नियुक्त कर पोकरण भेजा।110 सरदारों ने पोकरण छोड़ने से पूर्व सिंघवी प्रतापमल को वहां का प्रबंध सौपा था। मुंहता नैणसीने उसे पूर्व निर्देशानुसार जोधपुर भेज दिया। नैणसी ने पोकरण में एक थाना स्थापित किया। राठौड़ को गढ़ की चाबियाँ सौंपी गई।111 ई.सन् 1655 (वि.सं. 1711) के पोकरण गढ़ से प्राप्त से एक अभिलेख के अनुसार महाराजा जसवंतसिंह ने पोकरण निर्माण करवाया।
जैसलमेर का महारावल सबलसिंह जिसने पूर्व में मारवाड़ की सेना को पोकरण दिलाने में सहयोग दिया था। अब पुनः पोकरण पर अधिकार करना चाहता था। इसके लिए वह उचित अवसर की प्रतीक्षा में था।
ई.सनृ 1657 (वि.सं. 1714) में मुगल बादशाह ने अपनी एक रूग्ण अवस्था जानकर अपने ज्येष्ठ पुत्र द्वारा शिकाह को अपना उŸाराधिकारी घोषित किया। शाहजहां के शेष पुत्रों ने उसे स्वीकार नहीं किया। फलस्वरूप दिल्ली साम्राज्य की राजगद्दी को लेकर उतराधिकार संघर्ष प्रारंभ हो गयां इस युद्ध में महाराज जसवंत ने दारा शिकोह का पक्ष लिया। इस युद्ध में औरंगजेब की विजय हुई। चूंकि महाराज जसवंतसिंह इस युद्ध में औरंगजेब के खिलाफ लड़ा था। इसलिए महारावल सबलसिंह को पोकरण का अधिकार करने का उचित समय लगा। उसने अपने पुत्र कुंवर अमरसिंह को 15 मार्च 1659 ई. (वि.सं. 1716 चैत्र सुदि 3) को 3000 सैनिकों के साथ पोकरण भेजा। कुं. अमरसिंह ने पोकरण के गढ़ को घेर लिया। कुं. अमरसिंह के साथ भाटी रामसिंह और सीहड़ रघुनाथ भी थे। भाटियों की सेना ने पोकरण से आधा कोस दूर मेहरलाई के समीप पड़ाव किया। गोलियों और तीर चलाते हुए वे गढ़ के समीप पहुंचे और उस पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् भाटियों ने गढ पर आण फेरी (राज्याधिकार स्थापित होने की दुहाई फेरना) ।113
उस समय पोकरण के गढ़ में निम्नलिखित पदाधिकारी थे-114
1. रा. जगमाल मनोहरदासोत
2. रा. चन्द्रसेन सबलसिंहोत
3. रा. माधोदास जसंवतोत
4. रा. सार्दूल सूजावत मण्डलो
5. रा. रघुनाथ लक्ष्मीदासोत
6. भाटी वीठलदास सीहो
7. भाटी जोगीदास
8. भीवराज उघस रो
9. 4 मांगलिया इत्यादि
पोकरण पर जैसलमेर के भाटियों के अधिकार होने की सूचना महाराजा जसवंतसिंह को सिरोही के गांव ऊड में मिली। खबर पहुंचने के समय मिर्जा राजा जयंसिंह जसवंतसिंह के साथ मौजूद था। जसवंतसिंह ने यह घटनाक्रम अजमेर के सूबेदार बहादुर खां के बताया और उससे निवेदन किया कि वह एक शाही मनसबदार जैसलमेर भेजकर पोकरण को खाली करवाए। जयसिंह इससे सहमत था किन्तु नवाब को यह विचार पसन्द नहीं आया। जयसिंह ने चैधरी रतनसी के हाथ एक पत्र  रावलसबलसिंह के पास भिजवाया तथा कहलवाया कि बादशाह की ओर से यह जागीर में महाराजा जसवन्त सिंह को दी गई है। किन्तु सवाईसिंह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
तत्पश्चात् महाराजा जसवंतसिंह ने अप्रेल, 1659 निम्नलिखित राठौड सरदारों के साथ मुहता नैणसी को पोकरण भेजा और स्वयं विवाह करने सिरोही चला गया।116
1. मुहता नैणसी
2. रा. राजसिंह सूरजमलोत
3. रा. सबलसिंह प्रागदासोत
4. रा. गोपीनाथ माघवदासोत
5. रा. हरीदास ठाकुर सिंहोत
6. रा. प्रतापसिंह गोपीनाथोत
7. रा. गराधर दास मोहणदासोत
8. भाटी भील प्राणदासोत
9. सोहड़ तेजसिंह माधोसिंहोत
10. रा.  श्याम साहिबखानोत
मुहता नैणसी की प्रार्थना पर राठौड़ लखधीर और राठौड़ भीव को सेना का नेतृत्व सौपा गया। इस बीच मुहता नैणसी एक बार जोधपुर आया तथा खजाने से 20,000 की रकम और आवश्यक सोजा सामान एकत्रित कर पुनः पोकरण लौट गया। पोकरण पहुंचने से पूर्व ही उसे यह सूचना मिल गई कि भाटी फलोदी पर आक्रमा करने का विचार बन रहे है। मार्ग में ही उसे बीकानेर नरेश कर्णसिंह का पत्र मिला जिसमें 500 सवार, 500 ऊँट, 500 पदातियों इत्यादि से मदद करने की पेशकश की गई थी किन्तु नैणसी ने उŸार भिजवाया कि फिलहाल उसे इसकी आवश्सयकता नहीं है। जरूरत पड़ने पर सहायता मांग ली जाएगी।
जोधपुर की सेना ने पोकरण के समीप डेरा डाला (वैशाख सुदी 8) । भाटियों ने जोधपुर की सेनाओं का जमावडा देखकर पोकरण गढ़ खाली कर दिया और मुख्य द्वार को पत्थरों से चुनवा दिया।118 जोधपुर हुकुमत की बही के अनुसार मिर्जा राजा जयसिंह ने चैधरी रतनसी और कछवाहा फतेहसिंह कोएक पत्र देकर भेजा। इस पत्र में जयसिंह के परामर्शानुसार भाटियों ने पोकरण शहर को खाली कर दिया।119
भाटियों के  सैन्य दबाव को देखकर नैणसी ने महाराज से निवेदन कर सेवाएं मंगवाई । जोधपुर की सेना की नवीन कुमुक आते ही जैसलमेर की सेना, जिसका नेतृत्व कुंवर अमरसिंह कर रहा था ने और पीछे हटने का निश्चय किया। यद्यपि महारावल सबलसिंह स्वयं भी सहायता करने को पहुंचा था।120 तथापि वह मारवाड से युद्ध व्यापक पैमान पर छेड़ने का साहस नहीं कर सका और जैसलमेर लौट गया। इसके पश्चात् महाराजा की सेना ने जैसलमेर राज्य में घुसकर आसणी कोट तक लूटमार की। जैसलमेर के भाटियों ने संधि का एक प्रस्ताव भेजा जिसे नैणसी ने ठुकरा दिया। उसने जैसलमेर में लूटमार को जारी रखा और पोकरण लौटते हुए भी लूटमार जारी रखा।121
जोधपुर हुकुमत बही के अनुसार नैणसी ने आसणीकोट में लूटमार करने के पश्चात् जैसलमेर के गढ़ को घरने का निश्चय किया। वस्तुतः जैसलमेर वाले यह सोच रहे थे कि मारवाड़ी सेना लूटपाट कर लौट जाएगी। अब उन्होंने सुरक्षात्मक रूख अपनाते हुए जैसलमेर के किले के द्वार को चुनवा दिया।122 तत्पश्चात् राठौड़ सरदारों के विरोध के कारण गढ़ पर आक्रमण टालना पड़ां जून 1659 ई (वि.सं. 1716 ज्येष्ठ वदी 13) को मारवाड की सेना पोकरण लौट आई। मुहता नैणसी ने यहां की सुरक्षा व्यवस्था को और सुदृढ किया। राठौड सबलसिंह पोकरण् के थाने में पहले से ही पदस्थापित था। इस माह मुहता नैणसी अपने सरदारों सहित जोधपुर लौट आया।
मूहता नैणसी को पोकरण से जोधपुर गए हुए मुश्किल से दस दिन ही हुए थे कि महारावल सबलसिंह ने भाटी रामसिंह के नेतृत्व में दो हजार सैनिक पोकरण पर अधिकार करने भेज दिए। राठौड़ सबलसिंह ने भाटियों पर जबरदस्त प्रत्याक्रमण किया। नगर में मण्डी में दोनो पक्षों में युद्ध हुआ जिसमें 10 भाटी और जोधपुर सेन के 2 योद्धा मारे गए। पोकरण पर अधिकार करने की असफलता से कुपित होकर भाटियों ने पोकरण के आस-पास के गांवों में आग लगा दी। तत्पश्चात् वे डूंगरसर होते हुए फलौदी के राणीसर जलाशय पर जाकर रूके।
मुंहता नैणसी ने जोधपुर में सैना और साजो सामान एकत्रित कर फलोदी की ओर प्रस्थान किया। नैणसी के फलोदी होने से पूर्व ही भाटियों की सेना फलोदी से पलायन कर चुकी थी। नैणसी में फलोदी की ओर से जैसलमेर के भाटियों के गांव में लूटमार का अभियान चलाया। इस दौरान बीकानेर के राजा कर्णसिंह की बारात जैसलमेर जाते हुए कीरड़े गांव में रूकी। कर्णसिंह ने दोनो पक्षों को बुलवाकर समझाया, किन्तु स्थिति जस की तस रही। इधर रावल सबलसिंह ने 20 दिन तक बारात को रोकर उसकी अच्छी खातिर की। लौटते हुए मार्ग में रूणेचा (रामदेवरा) रूका। कर्णसिंह ने मुंहता नैणसी को भेंट करने के लिए पुनः बुलवाया। जुलाई माह (भाद्रपद वदि 8) को उसने दोनो पक्षों से लडाई समाप्त करने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवाए। एक भोज का भी आयोजन किया गया जिसमें राठौड़ बिहारीदास और राजसिंह को भाटी रामसिंह और रघुनाथ के साथ एक थाली में बैठाकर भोजन करवाया गया। इस प्रकार महाराज कर्णसिंह की मध्यस्थ भूमिका के सकारात्मक परिणाम निकले। दोनो पक्षों ने फिर कभी  एक-दूसरे के क्षेत्राधिकार को लांघने का प्रयास नहीं किया।125
परगना पोकरण जो बादशाह के दरबार में सातलमेर नाम से दर्ज था। महाराजा जसवंतसिंह को 8,00,000 दान में जागीर के रूप में प्रदान किया गया था। 1658 ई (वि.सं. 1715 के फाल्गुन वदि 13) को यह परगना महाराजा जसवंतसिंह ने पोकरण पुलिस चैकी प्रमुख सबलसिंह प्रयागदसोत और उसके पुत्र चन्द्रसेन राठौड़ 41,000 की रेख पर 1664 ई. (सं.  1721 की मिंगसर सुदी 7)  को मुहणेत नैणसी और नरसिंहदास ने इसे दुरुस्त कर निम्नलिखित निश्चित की -
गांव रुपए आसागी /गांव निम्नलिखित है
40 27060
10,000 कसबै दांण सुधो 1
400 चाचा बांभण 1
200 भींवो भोजो 1
400 घुहड़सर 1
500 ऊधरास 1
800 बांभणु
1000 छायण
100 थाट
70 गाजण कालर री सरेह 1
200 वलहीयो 1
200 दूधीसयो 1
150 भोजी री सरेह
250 ढंढ री सरेह
900 बड़ली
1500 पदपदरो 1
400 माहव 1
1050 झालरीयोे 2
500 जसवंत पुरा 1
1000 मंढलो 1
250 राहडरो गांव 1
150 जैसंघ रो गांव 1
80 गोमटीया मोहर कालर
150 राहयो 1
100 नेहड सी सरेह 1
50 सोढ़ा री सरेह 1
250 गलरां री सरेह
1000 बांणीयां बांभण
800 काला बांभण 1
1500 लोहवो
700 ढंढ 1
1000 खारो 1
500 चांदसमो 1
150 केलावो
100 एका
100 खालत सरवणी री सरहे
400 वरडांणो 1
100 खेतपालियां री सरहे
30 5100 पोकरणा राठौड़ जगमाल के भाई बन्धुअें के
15 1700 सांसण चारण पंडित ब्राह्मणों के
85    33,850
 0     7,000 रामदेव जी दो मेले
85    40,860
इस प्रकार रेख में कुछ गांव 85 थे जिनकी रेख 40,860 रूपए थी।126




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