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Saturday, 7 January 2017

अध्याय - 2 -3

अध्याय - 2 -3


ज्ञातव्य है कि मूंहता नैणसी ने ख्यात और मारवाड रा परगना री विगत दोनो रचनाएॅ लिखी है। एक ही व्यक्ति द्वारा लिखे जाने के बावजूद दोनों ग्रंथों के कुछ विवरण में अन्तर है। उदाहरण के लिए विगत में लिखा है कि राव खींवा के समय पोकरण गढ के द्वार  नहीं था39 जबकि अपनी ख्यात में नैणसी ने लिखा कि किस प्रकार राव नरा ने पोलिये (पहरेदार) की हत्या करके पोल खोलकर गढ पर अधिकार कर लिया। जोधपुर राज्य की ख्यात40 में भी द्वार नहीं होने की जानकारी है। वाताएॅ चूंकि जनश्रुतियों पर आधारित होती है इसलिए इस प्रकार की गलती हो सकती है। नैणसी ने इस वार्ता को यथावत अपनी ख्यात में स्थान दे दिया। अतः हमारे विचार से पोकरण के गढ की पोल में दरवाजा नहीं रहा होगा।
ख्यात में एक अन्य प्रसंग है जो उपरोक्त वार्ता में वर्णित है कि गोविन्द के दो पुत्र जैतमाल और हमीर हुए।41 जबकि विगत में लिखा है कि नरा के दो पुत्र गोविन्द व हमीर हुए। राव सूजा ने गोविन्द को पोकरण और हमीर को फलोदी का टीका दिया।42 विगत में वर्णित तथ्य की पुष्टि महाकमां तवारीख री मिसलां रो ब्यारों से होती है जिसमें वर्णित है कि हमीर नरो सुजावत रो फलोदी रो धणी, गोयंद नरावत का पोकरण धणी।43 विश्वेवर नाथ रेऊ भी इसकी पुष्टि करते है।44 अतः ख्यात का विवरण त्रुटिपूर्ण है।
इसी प्रकार मूंहता नैणसी ने ख्यात और विगत ने नरा के पोकरण पर अधिकार करने के जो कारण् बताएं है उनमें भी अन्तर है। ख्यात में नैणसी ने कहा कि राव नरा पोकरण पर इसलिए अधिकार किया क्योंकि राव खींवा ने उसकी माता लक्ष्मी के विवाह का नारियल एक सर्वथा अनुचित कारण (दांत मोटे) है से लोटाकर उसके कुंवरपदे का अपमान किया था।45 इस प्रकार पोकरण पर अधिकार करने के पीछे प्रतिशोध की भावना थी जबकि विगत के अनुसार फलोदी के शुष्क और जल रहित होने के कारण राव नरा का वहां मन नहीं लग रहा था।46 अतः वह पोकरण पर अधिकार करने के उपर्युक्त दोनो ही कारण रहे होंगे। जोधपुर राज्य की ख्यात47 में लिखा है कि नरा ने पोकरण अपने नाम लिखवा ली। इस तथ्य के विषय में मूंहता नैणसी मौन है।
राव नरा की मृत्य के संबंध में भी विसंगतियां है। मूंहता नैणसी री ख्यात वार्ता में यह वि.सं. 1551 चेत्र वद 2 लिखा है।48 इतिहासविद् गौरीशंकर ओझा ने जोधपुर राज्य के इतिहास में इस नैणसी ख्यात का त्रुटिपूर्ण संदर्भ देते हुए वि.सं. 1551 चेत्र वद 5 या, ई.सं. 1496, 4 मार्च माना है49 । 1551 चैत्र वद 5  या ई.सं. 1496, 4 मार्च माना है। प. विश्वेश्वर नाथ रेऊ ने मारवाड का इतिहास में इसे वि.स. 1555 (ई.सन् 1498) माना है।50 जबकि मारवाड़ परगना री विगत में नेणसी ने लिखा है कि राव नरा की मृत्यु के बाद राव सूजा फौज लेकर पोकरण  आया।  उसने पोकरणों को पराजित कर दिया। संवत् 1560 में रावनरा के पुत्र राव गोविन्द (गोविन्ददास) को टीका दिया।51 मुंहता नैणसी री ख्यात में ‘नरा सूजावत राठौड अर खिंवसी पोकरणै री वार्ता‘ के अनुसार पोकरण पर अधिकार करने के समय लुंका (राव खींवा का पुत्र) का जन्म भी नहीं हुआ था। कालान्तर में लूंका ने ही घोडें पर सवार होकर दूसरे घोडें पर युद्ध करते हुए राव नरा के सिर पर आडी तलवार पर प्रहार करे हुए उसका सिर धड से अलग कर दिया था52। ऐसा बालक यदि हष्ट पुष्ट या बलिष्ठ हो तो कम से कम 8 या 9 वर्ष का तो रहा ही होगा।
सभी स्त्रोतों पर विचार करने के बाद यह प्रतीत होता है कि राव नश ने पोकरण पर ई-सन् 1494 (वि.सं. 1551) में आक्रमण किया होगा।53 ई-सन्  1503 (वि.सं. 1560) में वह राव खींवा और लूंका के आक्रमण का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ54 । इस वर्ष मारवाड़ नरेश राव सूजा के पोकरणा राठौडो का दमन कर राव नश के पुत्र गोविन्द के पोकरण का टीका दिया। गोविन्द की कम अवस्था 4 अथवा 5 वर्षो तक उसके सहयोगियों ने उसे पोकरणों पर चढ़ाई करने से रोका।55 नैणसी ख्यात में वर्णित वार्ता को यदि हम सही माने नरा के आक्रमण के अगले वर्ष लूंका का जन्म हुआ होगा अर्थात् ई-सन् 1495। ई सन् 1503 ई मगें उसने आठ वर्ष की अवस्था में नरा से युद्ध किया होगा तथा संयोगवश नरा को मारने में सफल रहा होगा।56 12 वर्ष का होने पर उसका गोविन्द से युद्ध हुआ होगा (ई सन् 1507) और इसी वर्ष दोनों ने समझौता कर राज्य आपस में बराबर बांट लिया गया होगा। निःसंदेह उसे इस कार्य में अन्य राठौड़ वीरों का भी सहयोग मिला होगा।
राव गोविन्द की ई. सन् 1525 (वि.सं. 1582) में मृत्यु होने के बाद उसके पुत्र जेतमाल को टीका हुआ। गौ.शा.ओझा जोधपुर राज्य का इतिहास भाग प्रथम पृष्ठ 311 में लिखा है कि ‘‘राव जैतमाल गोयन्द के पुत्र नरा के पौत्र कान्हा का अमल था‘‘ ओझा जी की यह टिप्पणी सही नहीं है क्योंकि अन्य कोई भी समकालीन स्त्रोत इस विषय में हमे जानकारी नहीं देते है। राव जेतमाल का विवाह जैसलमेर के राव मालदेव की बेटी से हुआ। राव जैतमाल अयोग्य थ। उसके प्रधान ने महाजनों का शोषण करना और उन्हें लूटना प्रारंभ कर दिया। जब महाजन एकत्रित होकर राव जैतवाल के पास गए तो राव ने उनकी कोई सुनवाई नहीं की। तब महाजन जोधपुर के राव मालदेव के पास पहुंचे तथा अपनी आपबीती और शोषण की विषय में महाराजा को जानकारी दीे।57 राव मालदेव ने ई.सन् 1550 (वि.सं. 1607) में राठौड नगा  ओर बीदा को सेना देकर पोकरण-सातलमेर भेजा। राव जैतमाल ने पांच दिनों तक युद्ध जारी रखा। लगातार तोपों की गोलाबारी से गढ की बावड़ी नष्ट होकर (गोले लगने से) सूख गई। ऐसी परिस्थिति में जैतमाल ने गढ जोधपुूर की सेना को सौप दिया। उसे कैद कर लिया गया किन्तु बाद में मुक्त कर दिया गया। तब वह अपने ससुर भाटी रावल मालदेव के पास जैसलमेर चला गया।58
वस्तुतः राव मालदेव जिस समय जोधपर की गद्दी पर बैठा केवल जोधपुर और सोजत परगनों पर ही उसका अधिकार  था। जैतारण, पोकरण, फलौदी, बाडमेर, सिवाना, मेड़ता इत्यादि के स्वामी आवश्यकता पडने पर सैन्य सहायता अवश्य देते थे अन्यथा वे स्वतंत्र थे। अतः राव मालदेव उन्हें अधीन करने हेतु अवसर की ताक में था। पोकरण सातलमेर पर अधिकार कर ने के बाद उसने छल से फलौदी पर भी अधिकार कर लिया।59
राव जैतमाल के ससुर महारावल मालदेव ने उसे शरण दी थी। राव जैतमाल ने महारावल की अधीनता को स्वीकार करके पोकरण पुनः हस्तगत करने में उसकी सहायता करने का निवेदन किया60। कुंवर हरराज के नेतृत्व में महारावल ने एक सेना पोकरण भेजी। महारावल मालदेव अपने जवाई जैतमल की मदद करने के साथ-साथ पोकरण एवं फलौदी क्षेत्र में राव मालदेव की बढ़ती गतिविधियों पर अंकुश भी लगाना चाहता। राव मालदेव जैसलमेर राज्य की संप्रभुता के लिए खतरा बर कर उभर रहा था।


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