अध्याय - 2 -4
हरराज ने बाड़मेर के रावत भीम को अपनी तरफ करके राव मालदेव के विरूद्ध सहायता देने के लिए बुलाया। वह 400 घुड़सवारों सहित हरराज की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने जैतमाल के साथ मिलकर राव मालदेव की सेना पर आक्रमण किया ओर 400 ऊँट छीन लिए।61 मारवाड़ की सेना उनका पीछा करती हुई कुंवर हरराज के शिविर तक जा पहुंची। उस समय भाटियों की सेना इधर-उधर बिखरने के कारण राठौड़ो से मुकाबला करने में विफल रही। फलस्वरूप हरराज को अपना शिविर छोड़कर जैसलमेर का मार्ग पकड़ना पड़ा।62
इस प्रकार अन्ततः हरराज के नेतृत्व में जैसलमेर के भाटियों का अभियान विफल रहा। इसमें भाटियों से रणनीतिक गलती भी हुई। यदि हरराज ने फलोदी एवं पोकरण दोनो स्थानों पर एक साथ अभियान करने के स्थान पर अपनी पूर्ण शक्ति पोकरण-सातलमेर पर अधिकार करने में लगाई होती उसे सफलता मिल सकती थी। इस सैनिक अभियान ने जैसलमेर और मारवाड़ के संबंधों में कटुता के बीज बो दिए। जोधपुर का राव मालदेव यद्यपि इस सैन्य अभियान में सुल रहा था परन्तु आगे चलकर मारवाड़ राज्य को पोकरण से हाथ धोना पडा और लंबे समय तक पोकरण पर जैसलमेर के भाटियों का अधिकार रहा। जोधपुर का राव मालदेव अपने सभी राठोड बन्धुओं को अधीन करने का इच्छुक था। बाड़मेर के राव भीव जिसने मारवाड-जैसलमेर संघर्ष में भाटियों का साथ दिया था और राठौड़ो के ऊँट छीन लिए थे, के विरूद्ध ई सन् 1557 (वि.सं. 1608) में सेना भेजी। राव भीव ने पराजित होने के पश्चात् महारावल मालदेव की अधीनता स्वीकार करके सैन्य सहायता मांगी। रावल भीव ने हरराज की सहायता से बाड़मेर पर स्वीकार करके सैन्य सहायता मांगी। रावल भील ने हररज की सहायता से बाड़मेर पर पुनः अधिकार कर लिया। नाराज होकर राव मालदेव ने जैसलमेर पर आक्रमण और संधि करने के लिए बाध्य किया। इस संघर्ष की जड़ वास्तव में पोकरण ही था।
ई. सन् 1550 (वि.सं. 1607) के लगभग राव मालदेव ने सातलमेर के गढ़ को नष्ट कर दिया और राव नरा के द्वारा उजाड़े हुए पोकरण शहर के प्राचीन गढ़ को नष्ट कर दिया और राव नरा के द्वारा उजाड़े हुए पोकरण शहर के प्राचीन गढ़ का ही पुनर्निमाण और सुदृढ़ीकरण करवाया। सातमेर के गढ़ से प्राप्त निर्माण सामग्री का यहां प्रयोग किया गया।64 सातलमेर के पत्थरों और अन्य निर्माण सामग्रीयों का राव मालदेव ने मेड़ता भिजवाकर मालकोट बनवाया। इससे स्पष्ट होता है कि राव मालदेव ने मेड़ता भिजवाकर मालकोट बनवाया। इससे स्पष्ट होता है कि राव मालदेव ने कोई नया दुर्ग नहीं बनवाकर पोकरण के प्राचीन दुर्ग को ही दुरूस्त एवं पुननिर्मित किया क्योंकि एक गढ़ की निर्माण सामग्री से दो गढ़ बनवाया जाना संभव प्रतीत नहीं होता। गढ में राव मालदेव ने एक पुलिस चैकी स्थापित की ।
राव मालदेव के उŸाराधिकारी राव चन्द्रसेन ने मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की। अतः मुगल बादशाह अकबर की शाही फौजो ने जोधपुर पर घेर डाला (1565 ई) । करीब आठ माह संघर्ष करने के पश्चातृ दुर्ग में संचित सामग्री तथा जल का अभाव हो गया। फलस्वरूप ई सन् 2 दिसंबर 1565 (वि.सं. 1622) को राव चन्द्रसेन ने रात्रि में गढ़ छोड़कर पहले भाद्राजूण और फिर सिवाना के समीप पीपलण के पर्वतों में रहने चला गया। पोकरण में उसने योग्य अधिकारियें की नियुक्ति की है -
1. चैहान रामो झांझणोत
2. पंवार अखावत नराइण
3. खींवसी अखावत
4. कानड़दास जोगावत
5. सोहड़ राजधर सिंहावत
6. भाटी सूरजमल केल्हण
7. पेराड़ राजो उधरास क।66
पोकरण कोट को सामरिक दृष्टि से उपयुक्त जानकर पोकरण कोट को सामरिक दृष्टि ने उस राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बनाने का मानस बनाया। कुछ समय पश्चात् आमेर के राजा राव मानसिंह राजावत देवराज थलेचा (भाटी) के आमंत्रण कर पोकरण गढ पर अधिकार करने 500 घुड़सवारों के साथ लूंणी पहुंचा।67 तब मानसिंह ने अपने प्रधान को राव चन्द्रसेन के पास भेजकर कहलवाया कि हमें पोकरण दे दो तथा बदले में हमसे सेवाएं ले लो। किन्तु चन्द्रसेन द्वारा इस बात को अस्वीकार कर दिया गया।68 राव मानसिक ने इस अवसर पर संघर्ष को टालकर लौट जाना ही उचित समझा। राव चन्द्रसेन के सैनिकों ने थलेचा देवराज के गांव के महाजनों को लूटा। राव चन्द्रसेन ने एक बार आकर पोकरण गढ़़ देख लिया ओर पुनः पीपलण के पहाड़ो में वापस चला गया।69
ई सन् 1575 (1632 वि.सं.) में रावलजीत थलेचा (भाटी) ने पोकरण के सोहड़ो (राठौडों की एक शाखा) की गायों को पोकड कर अधिकार में कर लिया। राव चन्द्रसेन के निम्नलिखित व्यक्ति इस आक्रमण में मारे गए -
1. चैहान रामौ 2. पंवार नारायण
3. सोहड़ राजघर 4. सोहड रतनौ
5. भाटी सूरजमल 6. सोहड़ देदो ।
7. राठौड़ किशनदास को गंभीर चोटे लगी।70
उपरोक्त युद्ध के परिणामों के विषय में समकालीन स्त्रौत मोन हैं।
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इस प्रकार अन्ततः हरराज के नेतृत्व में जैसलमेर के भाटियों का अभियान विफल रहा। इसमें भाटियों से रणनीतिक गलती भी हुई। यदि हरराज ने फलोदी एवं पोकरण दोनो स्थानों पर एक साथ अभियान करने के स्थान पर अपनी पूर्ण शक्ति पोकरण-सातलमेर पर अधिकार करने में लगाई होती उसे सफलता मिल सकती थी। इस सैनिक अभियान ने जैसलमेर और मारवाड़ के संबंधों में कटुता के बीज बो दिए। जोधपुर का राव मालदेव यद्यपि इस सैन्य अभियान में सुल रहा था परन्तु आगे चलकर मारवाड़ राज्य को पोकरण से हाथ धोना पडा और लंबे समय तक पोकरण पर जैसलमेर के भाटियों का अधिकार रहा। जोधपुर का राव मालदेव अपने सभी राठोड बन्धुओं को अधीन करने का इच्छुक था। बाड़मेर के राव भीव जिसने मारवाड-जैसलमेर संघर्ष में भाटियों का साथ दिया था और राठौड़ो के ऊँट छीन लिए थे, के विरूद्ध ई सन् 1557 (वि.सं. 1608) में सेना भेजी। राव भीव ने पराजित होने के पश्चात् महारावल मालदेव की अधीनता स्वीकार करके सैन्य सहायता मांगी। रावल भीव ने हरराज की सहायता से बाड़मेर पर स्वीकार करके सैन्य सहायता मांगी। रावल भील ने हररज की सहायता से बाड़मेर पर पुनः अधिकार कर लिया। नाराज होकर राव मालदेव ने जैसलमेर पर आक्रमण और संधि करने के लिए बाध्य किया। इस संघर्ष की जड़ वास्तव में पोकरण ही था।
ई. सन् 1550 (वि.सं. 1607) के लगभग राव मालदेव ने सातलमेर के गढ़ को नष्ट कर दिया और राव नरा के द्वारा उजाड़े हुए पोकरण शहर के प्राचीन गढ़ को नष्ट कर दिया और राव नरा के द्वारा उजाड़े हुए पोकरण शहर के प्राचीन गढ़ का ही पुनर्निमाण और सुदृढ़ीकरण करवाया। सातमेर के गढ़ से प्राप्त निर्माण सामग्री का यहां प्रयोग किया गया।64 सातलमेर के पत्थरों और अन्य निर्माण सामग्रीयों का राव मालदेव ने मेड़ता भिजवाकर मालकोट बनवाया। इससे स्पष्ट होता है कि राव मालदेव ने मेड़ता भिजवाकर मालकोट बनवाया। इससे स्पष्ट होता है कि राव मालदेव ने कोई नया दुर्ग नहीं बनवाकर पोकरण के प्राचीन दुर्ग को ही दुरूस्त एवं पुननिर्मित किया क्योंकि एक गढ़ की निर्माण सामग्री से दो गढ़ बनवाया जाना संभव प्रतीत नहीं होता। गढ में राव मालदेव ने एक पुलिस चैकी स्थापित की ।
राव मालदेव के उŸाराधिकारी राव चन्द्रसेन ने मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की। अतः मुगल बादशाह अकबर की शाही फौजो ने जोधपुर पर घेर डाला (1565 ई) । करीब आठ माह संघर्ष करने के पश्चातृ दुर्ग में संचित सामग्री तथा जल का अभाव हो गया। फलस्वरूप ई सन् 2 दिसंबर 1565 (वि.सं. 1622) को राव चन्द्रसेन ने रात्रि में गढ़ छोड़कर पहले भाद्राजूण और फिर सिवाना के समीप पीपलण के पर्वतों में रहने चला गया। पोकरण में उसने योग्य अधिकारियें की नियुक्ति की है -
1. चैहान रामो झांझणोत
2. पंवार अखावत नराइण
3. खींवसी अखावत
4. कानड़दास जोगावत
5. सोहड़ राजधर सिंहावत
6. भाटी सूरजमल केल्हण
7. पेराड़ राजो उधरास क।66
पोकरण कोट को सामरिक दृष्टि से उपयुक्त जानकर पोकरण कोट को सामरिक दृष्टि ने उस राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बनाने का मानस बनाया। कुछ समय पश्चात् आमेर के राजा राव मानसिंह राजावत देवराज थलेचा (भाटी) के आमंत्रण कर पोकरण गढ पर अधिकार करने 500 घुड़सवारों के साथ लूंणी पहुंचा।67 तब मानसिंह ने अपने प्रधान को राव चन्द्रसेन के पास भेजकर कहलवाया कि हमें पोकरण दे दो तथा बदले में हमसे सेवाएं ले लो। किन्तु चन्द्रसेन द्वारा इस बात को अस्वीकार कर दिया गया।68 राव मानसिक ने इस अवसर पर संघर्ष को टालकर लौट जाना ही उचित समझा। राव चन्द्रसेन के सैनिकों ने थलेचा देवराज के गांव के महाजनों को लूटा। राव चन्द्रसेन ने एक बार आकर पोकरण गढ़़ देख लिया ओर पुनः पीपलण के पहाड़ो में वापस चला गया।69
ई सन् 1575 (1632 वि.सं.) में रावलजीत थलेचा (भाटी) ने पोकरण के सोहड़ो (राठौडों की एक शाखा) की गायों को पोकड कर अधिकार में कर लिया। राव चन्द्रसेन के निम्नलिखित व्यक्ति इस आक्रमण में मारे गए -
1. चैहान रामौ 2. पंवार नारायण
3. सोहड़ राजघर 4. सोहड रतनौ
5. भाटी सूरजमल 6. सोहड़ देदो ।
7. राठौड़ किशनदास को गंभीर चोटे लगी।70
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